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द गर्ल इन रूम 105

अध्याय 21


'अल्लाह रहम,' फरजाना ने कहा और अपनी हथेलियां उठाकर मन ही मन दुआ करने लगी। दो कप कहवा चाय

के दौरान मैंने ज़ारा की मौत से लेकर इस मामले की जांच तक की पूरी कहानी उन्हें सुना दी।

"बस इतना ही। हमें ज़ारा और सिकंदर की एक तस्वीर मिली थी, इसलिए हम सिकंदर से मिले। लेकिन वह हमसे बात किए बिना ही वहां से चला गया, मैंने कहा।

"वो दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब थे। लेकिन ज़ारा के अब्बा ने उन्हें अलग कर दिया।' "हां, वो हमेशा सिकंदर की फ़िक्र किया करती थी. मैंने कहा।

'वो सौतेले भाई-बहन थे, लेकिन उनमें सगों से भी ज्यादा प्यार था।' मैंने सिर हिलाया और मुस्करा दिया।

'लेकिन यही जिंदगी है। उन्होंने कहा। कभी-कभी लोग खून का रिश्ता हुए बिना भी एक-दूसरे के बहुत करीब हो जाते हैं। अब तुम्हीं को देख लो। जारा और तुम अलग हो गए थे, लेकिन आज

जानने की कोशिश कर रहे हो।'

'आंटी, क्या आप हमारी मदद करेंगी?"

"मुझ जैसी बुद्धिया भला तुम लोगों की क्या मदद कर सकती है?" उन्होंने चाय के खाली प्याले एक ट्रे में रखे और उठ खड़ी हुई।

मैं मदद करता हूं, आंटी, सौरभ ने कहा और उनके हाथ से ट्रे लेकर किचन में चला गया।

"आंटी, हमें सिकंदर से बात करनी होगी। माफ़ कीजिए, लेकिन अगर वह भागता ही रहा तो शक उसी पर किया जाएगा।'

'किस बात का शक?'

"जारा को मारने का।'

"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? उन्होंने कहा। मैं उनकी ओर देखता रहा।

मैं तो समझी थी तुम जारा को अच्छी तरह जानते थे। सिकंदर कभी भी अपनी जारा आपा को चोट नहीं "लेकिन वह शक के दायरे में है, मैंने कहा।

पहुंचा सकता।'

'हो ही नहीं सकता,' फरजाना ने अपना सिर हिलाते हुए कहा। यह उस पर मुझे मारने का इल्जाम लगाने की तरह होगा, अपनी सगी मां को।"

"अगर उसने कुछ नहीं किया है तो उसे हमसे बात करनी चाहिए थी। वो बात करने से भाग क्यों गया?"

वो डर गया होगा। आखिरकार वो बच्चा ही तो है, फरजाना ने कहा। उनकी आंखें भर आई। सौरभ किचन

से लौट आया था और उसने मेरी तरफ देखा। वह नहीं डरा, उल्टे उसने हमें डरा दिया। उसके पास गत थी। वो बच्चा नहीं है, मैंने कहा फरजाना उठीं और कमरे की छोटी-सी खिड़की तक चली गईं। वे बाहर मौजूद अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स को ताकती रहीं। फिर खुद को संभालकर बोलीं, 'वो बच्चों जैसा ही है। पांचवीं क्लास के बाद उसने स्कूल छोड़ दिया

था। उसका दिमाग़....

"उसका दिमाग़ कमज़ोर है?"

"हां सभी उसको मूर्ख बोलते थे। उसका क़द ज़रूर बड़ा हो गया, लेकिन दिमाग से वो बच्चा ही बना रहा।' मैंने सिर हिला दिया। वो खिड़की से बाहर झांकते हुए ही बोलती रहीं।

"और फिर ज़ारा के अब्बा ने हमें छोड़ दिया। उन्हें वो जैनब अपने अकाउंट डिपार्टमेंट में मिल गई। उसने

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